युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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शुक्रवार, 30 मई 2008

ज़ैदी जाफ़र रज़ा की दो ग़ज़लें

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[ 1 ] न जाने कब से हैं सहरा कई बसाए हुए हुई हैं मुद्दतें, आंखों को मुस्कुराए हुए ये माहताब न होता, तो आसमानों पर सितारे आते नज़र और टिमटिमाए ...
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