युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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बुधवार, 18 जून 2008

रसलीन और बिहारी के दोहे / काव्यानुवाद

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अमी, हलाहल, मद भरे, स्वेत, श्याम, रतनार जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जिहि चितवत इक बार आबे-हयात, ज़हरे-हलाहल, शराबे-नाब छलके है चश्मे-सुर्खो-सि...
सोमवार, 16 जून 2008

प्रतिष्ठित कुरआन की सूरह 'अल-अस्र' का काव्यानुवाद / शैलेश ज़ैदी

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युगों का साक्ष्य देकर कह रहा हूँ मैं कि है सम्पूर्ण मानव-जाति घाटे में बचे हैं बस वही,प्रतिबद्ध जिनकी आस्थाएं हैं सजग हैं कर्म के प्रति जो ह...
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