युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

सूरदास के रूहानी नग़मे / शैलेश ज़ैदी [ क्रमशः 3 ]

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[ 15 ] तुम्हरी कृपा गोपाल गुसाईं, हौं अपने अज्ञान न जानत. उपजत दोष नैन नहिं सूझत, रवि की किरन उलूक न मानत.. सब सुख निधि हरिनाम महा-मनि सो पा...
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