युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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सोमवार, 23 जून 2008

सूरदास के रूहानी नग़मे / शैलेश ज़ैदी [ क्रमशः-1 ]

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[ 1 ] चरन कमल बन्दौं हरि राई. जाकी कृपा पंगु गिरी लंघै, अंधे कौ सब कछु दरसाई. बहिरौ सुनै, गुंग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई. सूरदास स्वा...

सूरदास के रूहानी नग़मे / भूमिका

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सोई रसना जो हरि गुन गावै आचार्य वल्लभ के भक्ति-दर्शन को केन्द्र में रख कर सूर-काव्य को व्याख्यायित एवं विवेचित करने की अपनी एक समृद्ध परम्पर...
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