tag:blogger.com,1999:blog-6753607008942686249.post5610482772898141835..comments2023-08-03T08:13:15.576-07:00Comments on युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش: चराग़ बुझने का एहसास कुछ हुआ ही नहीं.युग-विमर्शhttp://www.blogger.com/profile/05741869396605006292noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6753607008942686249.post-48072708177302912552009-02-02T20:15:00.000-08:002009-02-02T20:15:00.000-08:00सहमत हूँ गौतम जी से ,उर्दू और फारसी अल्फाजों में म...सहमत हूँ गौतम जी से ,उर्दू और फारसी अल्फाजों में मुश्किलात हो जाते है कई दफा पाठकों को पढ़ने में .. मगर शैलेश जी ने जी बारीकी से कसीदाकारी करी है वो कबीले तारीफ है ... इसका मतलब दे कर इहाँ करा है पाठकों पे ... बहोत बहोत बधाई आपको.. आखिरी शे'र तो जैसे कहर बरपा रहा है ... बहोत उम्दा साहब.. <BR/><BR/><BR/>अर्श"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6753607008942686249.post-77180049945605745302009-02-02T18:10:00.000-08:002009-02-02T18:10:00.000-08:00प्रिय गौतम जीयह कहना मुश्किल है कि ज्यादती मेरी है...प्रिय गौतम जी<BR/>यह कहना मुश्किल है कि ज्यादती मेरी है या आपकी. शेर तो सभी स्पष्ट हैं, आप ने शायद इन प्रतीकों पर ध्यान नहीं दिया जबकि सभी प्रतीक परंपरागत हैं. <BR/>१. चेराग मानव के शरीर को, जिसमे आत्मा रुपी लौ का प्रकाश रहता है, प्रतीकायित करता है. इस प्रकाश से सभी लाभान्वित होते हैं. इसका बुझ जाना जीवन-लीला का समाप्त हो जाना है. परिवारी जन,पास-पड़ोस के लोग, मित्र इत्यादि सभी उस चेराग से बे-पर्वा रहकर गफलत की नींद में डूबे रहते हैं और वह चेराग कब बुझ गया उन्हें पता तक नहीं चलता.<BR/>२. ज़र्फ़ अर्थात बर्तन भी मानव शरीर का प्रतीक है. 'जो ज़र्फ़ कि खाली है सदा देता है' के माध्यम से शायर ने अज्ञानी व्यक्ति का संकेत किया है. बर्तन का आबे हयात [अमृत] से लबरेज़ [भरा] होना, व्यक्ति-विशेष के अत्यधिक ग्यानी होने को ध्वनित करता है.और बर्तन का लुढ़क कर रिक्त हो जाना आत्मा से शरीर को रिक्त कर देना है, इस प्रक्रिया की कोई आवाज़ नहीं होती. <BR/>३. मनुष्य चारों ओर से लोहे की दीवारों जैसे अवरोधों और प्रतिबंधों से घिरा हुआ है. यह प्रतिबन्ध मूल्यपरक भी हो सकते हैं, धर्म शास्त्रों के भी और अनुशासनिक भी.वह इन्हें तोड़ने के लिए छटपटाता रहता है और कोई रास्ता नहीं मिलता. हाँ जो साहसी होते हैं, इस लोहे की दीवार को चीर कर आगे बढ़ जाते हैं. <BR/>४. आज परिवारों की स्थिति यह हो गई है की उसका हर व्यक्ति लावारिस सा बिखर कर रह गया है. मुसीबत आने पर दूसरे लोग ही हाथ बटाते हैं. अज़ीज़ [प्रिय-जन] और अक़रुबा [निकट सम्बन्धी] कहीं आस-पास नहीं होते.<BR/>क्या आपको यह बातें इन शेरों में स्पष्ट दिखायी नहीं दे रही हैं ? यदि नहीं, तो इन शेरों की कोई सार्थकता नहीं है.युग-विमर्शhttps://www.blogger.com/profile/05741869396605006292noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6753607008942686249.post-92182085056989163002009-02-02T10:10:00.000-08:002009-02-02T10:10:00.000-08:00ये ज्यादती है शैलेश जी,कई शेर नहीं समझ पा रहा हूँ....ये ज्यादती है शैलेश जी,कई शेर नहीं समझ पा रहा हूँ....<BR/>फिर से पढ़ता हूँ<BR/>नहीं,नोट कर के रख रहा हूँ<BR/>दुबारा आता हूँ<BR/>हाँ,आखिरी शेर ने सारी शिकायतें दूर कर दी हैं<BR/>क्या अंदाज़ है सर...!!!!<BR/>"कहीं भी पास अज़ीज़ और अक़रुबा ही नहीं" ये थोड़ा मुश्किल हो गया है मेरे लिये<BR/>और दूसरा शेर भी नहीं समझ पाया,यदि फुरस्त में हों आप,,,गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.com