मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

भीड़ में रास्ता बनाते रहे / بھیڑ میں راستہ بناتے رھے

भीड़ में रास्ता बनाते रहे।
हम भी तक़दीर आज़माते रहे॥
जान अपनी बचा के ख़ुश थे बहोत,
जाँनिसारी के गीत गाते रहे॥
सुल्ह करना जिन्हें गवारा न था,
जंग होने पे मुँह छुपाते रहे॥
आज किस शान से हैं कुर्सी नशीं,
लोग जिनका मज़ाक़ उड़ाते रहे॥
कैसी जज़बातियत है मज़हब में,
ख़ुब लोगों को वरग़लाते रहे॥
उसके घर से उठा किये शोले,
और हम क़हक़हे लगाते रहे॥
सच तो ये है के दिल ही जानता है,
किस तरह दोस्ती निभाते रहे॥
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بھیڑ میں راستہ بناتے رھے
ہم بھی تقدیر آزماتے رھے
جان اپنی بچا کے خوش تھے بہت
جاں نثاری کے گیت گاتے رھے
صلح کرنا جنھیں گوارہ نہ تھا
جنگ ہونے پہ منہ چھپاتے رھے
آج کس شان سے ہیں کرسی نشین
لوگ جن کا مذاق اڑاتے رھے
کِسی جذباتیت ہے مذھب میں
خوب لوگوں کو ورغلاتے رھے
اس کے گھر سے اٹھا کۓ شعلے
اور ہم قہقہے لگاتے رھے
سچ تو یہ ہے کہ دل ہی جانتا ہے
کس طرح دوستی نبھاتے رھے
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1 टिप्पणी:

dipayan ने कहा…

सच तो ये है के दिल ही जानता है, किस तरह दोस्ती निभाते रहे॥

बेहतरीन लेख । बधाई ।