शुक्रवार, 31 जुलाई 2009
मुड़ के देखा था फ़क़त हो गया पत्थर नाहक़ ।
सोमवार, 27 जुलाई 2009
रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये।
रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये।
मुज़महिल हुईं यादें और तुम नहीं आये ॥
चान्द की हथेली पर रख के सर मुहब्बत से,
सो गयीं थकी किरनें और तुम नहीं आये ॥
ख़त तुम्हारे पढ़-पढ़ कर चांदनी भी रोई थी,
नम थीं रात की पलकें और तुम नहीं आये॥
धूप होके आँगन से छत पे जाके बैठी थी,
कोई भी न था घर में और तुम नहीं आये॥
टुकड़े-टुकड़े हो-हो कर चुभ रही थीं सीने में,
इन्तेज़ार की किरचें और तुम नहीं आये ॥
नीम पर लटकते हैं अब भी सावनी झूलए,
जा रही हैं बरसातें और तुम नहीं आये॥
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शनिवार, 25 जुलाई 2009
असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया ।
बुधवार, 22 जुलाई 2009
मैं बारिशों से भरे बादलों को देखता हूं
हवाएं हैं गरीबाँ चाक हर जानिब उदासी है।
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
मकान कितने बदलता रहा मैं घर न मिला।
जिस्म के ज़िन्दाँ में उमरें क़ैद कर पाया है कौन ।
रविवार, 19 जुलाई 2009
दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ।
शनिवार, 18 जुलाई 2009
दिल खिंच रहा है फिर उसी तस्वीर की तरफ़ ।
शनिवार, 4 जुलाई 2009
जुनूँ-खेजी में दीवानों से कुछ ऐसा भी होता है.
जुनूँ-खेजी में दीवानों से कुछ ऐसा भी होता है.
के जिसके फैज़ से क़ौमों का सर ऊंचा भी होता है.
सफ़ीने की मदद को खुद हवाएं चल के आती हैं,
सहूलत के लिए ठहरा हुआ दरिया भी होता है.
मेरी राहों में लुत्फे - नकहते - बादे-बहारी है,
मेरे सर पर महो-खुर्शीद का साया भी होता है.
बजाहिर वो मेरी जानिब से बे-परवा सा लगता है,
मगर एहसास उसको मेरे ज़खमों का भी होता है.
ये मज़्लूमी की चादर मैं जतन से ओढे रहता हूँ,
के लग्जिश से मेरा महबूब कुछ रुसवा भी होता है.
उसी का है करम इस हाल में भी सुर्ख-रू हूँ मैं,
बरतने में वो अक्सर हौसला अफजा भी होता है.
नज़र के सामने रहता है वो कितने हिजाबों में,
मगर ख़्वाबों में जब आता है बे-पर्दा भी होता है.
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