रविवार, 7 मार्च 2010

ज़िकरे रोज़ो-शब करता हूं

ज़िकरे रोज़ो-शब करता हूं।
उसकी बातें कब करता हूं॥

आँसू पलकों पर क्यों आये,
दिल में तलाशे-सबब करता हूं॥

सिर्फ़ लबों को चूम रहा हूं,
ऐसा कौन ग़ज़ब करता हूं॥

जब से उसको देख लिया है,
बातें कुछ बेढब करता हूं॥

रुस्वाई का ख़ौफ़ है इतना,
ज़िक्र भी ज़ेरे-लब करता हूं॥

सोच के शायद वो भी आये,
बरपा बज़्मे तरब करता हूं॥

उसकी ही बात समझते हैं सब,
बात किसी की जब कर्ता हूं॥
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